मानिंदे बर्फ़ कोह सा पत्थर पिघल गया
हाँ! शम्स दोपहर था चढ़ा शाम ढल गया
छलने की मेरी बारी थी पर वह छला मुझे
मेरा नसीबे ख़ाम वो यूँ भी बदल गया
मुझको पता नहीं है मगर कुछ तो बात है
जो चाँद आज दिन के उजाले निकल गया
साबुन लगे से जिस्म से फिसला हो जैसे दस्त
उस शख़्स पर से तीरे नज़र यूँ फिसल गया
रुख़ उसका मेरी सू था मगर लुत्फ़ ग़ैर सू
वक़्ते अजल मेरा यूँ कई बार टल गया
कहते हैं लोग वह भी तो शाइर है बाकमाल
क्यूँ मुझको यूँ लगा के वही ज़ह्र उगल गया
ग़ाफ़िल जी आप करते रहे शाइरी उधर
तीरे नज़र रक़ीब का जाना पे चल गया
-‘ग़ाफ़िल’
हाँ! शम्स दोपहर था चढ़ा शाम ढल गया
छलने की मेरी बारी थी पर वह छला मुझे
मेरा नसीबे ख़ाम वो यूँ भी बदल गया
मुझको पता नहीं है मगर कुछ तो बात है
जो चाँद आज दिन के उजाले निकल गया
साबुन लगे से जिस्म से फिसला हो जैसे दस्त
उस शख़्स पर से तीरे नज़र यूँ फिसल गया
रुख़ उसका मेरी सू था मगर लुत्फ़ ग़ैर सू
वक़्ते अजल मेरा यूँ कई बार टल गया
कहते हैं लोग वह भी तो शाइर है बाकमाल
क्यूँ मुझको यूँ लगा के वही ज़ह्र उगल गया
ग़ाफ़िल जी आप करते रहे शाइरी उधर
तीरे नज़र रक़ीब का जाना पे चल गया
-‘ग़ाफ़िल’
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (24-09-2017) को
ReplyDelete"एक संदेश बच्चों के लिए" (चर्चा अंक 2737)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब
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