Tuesday, December 26, 2017

नज़ारा भी तो अब है बदला हुआ

अरे! यह भी घाटे का सौदा हुआ
जो अपना था वह दूसरे का हुआ

न इक ठौर ठहरे न इक रह चले
मुसाफ़िर लगे है वो पहुँचा हुआ

उसी के है पास अपना जेह्नो जिगर
उसे इश्क़ में भी मुनाफ़ा हुआ

ये अच्छा है, देता है जो दर्दो ग़म
वही पूछता है भला क्या हुआ

हमेशा नज़र पर ही इल्ज़ाम क्यूँ
नज़ारा भी तो अब है बदला हुआ

न सोच! आएगा उसमें तूफ़ाँ कोई
वो दर्या है वह भी है ठहरा हुआ

भला क्यूँ न उसको हरियरी दिखे
जो सावन में ग़ाफ़िल जी अंधा हुआ

-‘ग़ाफ़िल’

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