दिल्ली और आगरा करे कोई
किस तरह फैसला करे कोई
ख़ुद तो ख़ुद का न ग़मगुसार हुआ
अब जो चाहे भी क्या करे कोई
अपनी ही तू करेगी ऐ किस्मत
क्यूँ तेरा आसरा करे कोई
गुफ़्तगू का न गर सलीका हो
अपनी ज़द में रहा करे कोई
ख़ूबी वह पहले ख़ुद में लाए तो
फिर मेरा तब्सिरा करे कोई
पूछे क्यूँ क्या है आतिशे उल्फ़त
पावँ उसमें ज़रा करे कोई
आह! ग़ाफ़िल नज़र के तीरों से
बोलिए क्या गिला करे कोई
-‘ग़ाफ़िल’
किस तरह फैसला करे कोई
ख़ुद तो ख़ुद का न ग़मगुसार हुआ
अब जो चाहे भी क्या करे कोई
अपनी ही तू करेगी ऐ किस्मत
क्यूँ तेरा आसरा करे कोई
गुफ़्तगू का न गर सलीका हो
अपनी ज़द में रहा करे कोई
ख़ूबी वह पहले ख़ुद में लाए तो
फिर मेरा तब्सिरा करे कोई
पूछे क्यूँ क्या है आतिशे उल्फ़त
पावँ उसमें ज़रा करे कोई
आह! ग़ाफ़िल नज़र के तीरों से
बोलिए क्या गिला करे कोई
-‘ग़ाफ़िल’
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