गोया इल्ज़ाम क़त्ल का सर है
मेरे हिस्से में आबरू पर है
हैं सभी दिल से मेरे वाबस्ता
कोई अन्दर तो कोई बाहर है
इश्क़ अगर है तो यह भरम ही क्यूँ
के जो जीता वही सिकन्दर है
मुस्कुराऊँ भी तो कहा जाए
तेरी ग़ल्ती यहाँ सरासर है
ग़ाफ़िल उल्फ़त का ज़िक़्र ही मत कर
आगे जी में थी अब तो जी पर है
-‘ग़ाफ़िल’
मेरे हिस्से में आबरू पर है
हैं सभी दिल से मेरे वाबस्ता
कोई अन्दर तो कोई बाहर है
इश्क़ अगर है तो यह भरम ही क्यूँ
के जो जीता वही सिकन्दर है
मुस्कुराऊँ भी तो कहा जाए
तेरी ग़ल्ती यहाँ सरासर है
ग़ाफ़िल उल्फ़त का ज़िक़्र ही मत कर
आगे जी में थी अब तो जी पर है
-‘ग़ाफ़िल’
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