Monday, January 27, 2020

तेरे पास ग़ाफ़िल वो शाना कहाँ है

वे लोग उनका आबाद ख़ाना कहाँ है
न पूछ आज बीता ज़माना कहाँ है

जो पाया उसे खोना आसान है पर
जो खोया उसे फिर से पाना कहाँ है

थी आगे मेरी अंजुमन तेरी मंज़िल
मगर अब तेरा आना जाना कहाँ है

मैं उठ तो रहा आस्ताँ से तेरे अब
इधर क्या पता आबोदाना कहाँ है

एक क़त्आ-

वो गर्मी की रात उस ज़माने की, छत का
फ़लक़ वाला वो शामियाना कहाँ है?
वो तारों को गिनने के बेजा बहाने
कनअँखियों का दिलक़श निशाना कहाँ है

न कर ये उठा ले जो ग़म हर किसी का
तेरे पास ग़ाफ़िल वो शाना कहाँ है

-‘ग़ाफ़िल’
(चित्र गूगल सेे साभार)

2 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 28
    जनवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. वाह!!!!
    बेहतरीन

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