बुरी हो शै जो भले ही वो मुख़्तसर देखो
किसी भी चीज़ को देखो मगर अगर देखो
गो चार सू हैं नज़ारे नज़र पे काबू हो पर
ये है ग़लत के हमेशा इधर उधर देखो
अब इधर देखोगे क्यूँ हाँ मगर दुआ है मेरी
खिले हों फूल उधर तुम जिधर जिधर देखो
ये आसमान है महफ़ूज़ तुम कहे थे अब
कटे पड़े हैं परिंदों के जो ये पर देखो
न होगा साथ सफ़र में कोई भी ग़ाफ़िल जी
तमाम शह्र तुम्हारा है वैसे गर देखो
-‘ग़ाफ़िल’
किसी भी चीज़ को देखो मगर अगर देखो
गो चार सू हैं नज़ारे नज़र पे काबू हो पर
ये है ग़लत के हमेशा इधर उधर देखो
अब इधर देखोगे क्यूँ हाँ मगर दुआ है मेरी
खिले हों फूल उधर तुम जिधर जिधर देखो
ये आसमान है महफ़ूज़ तुम कहे थे अब
कटे पड़े हैं परिंदों के जो ये पर देखो
न होगा साथ सफ़र में कोई भी ग़ाफ़िल जी
तमाम शह्र तुम्हारा है वैसे गर देखो
-‘ग़ाफ़िल’
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