तुम्हें भी लगेगा अगर देखते हो
हैं क्या क्या ये जो चश्मेतर देखते हो
दिखे भी तो क्यूँ उम्र भर की मुहब्बत
जो कुछ पल का हुस्न उम्र भर देखते हो
है गोया मुक़द्दस न जाने मगर क्यूँ
फ़साना मेरा मुख़्तसर देखते हो
गर इंसान हो तो फ़क़त ख़ामियाँ ही
नहीं देखनी थीं मगर देखते हो
वो चेहरा नहीं चाँद है मेरे ग़ाफ़िल
उसे क्यूँ नहीं भर नज़र देखते हो
-‘ग़ाफ़िल’
हैं क्या क्या ये जो चश्मेतर देखते हो
दिखे भी तो क्यूँ उम्र भर की मुहब्बत
जो कुछ पल का हुस्न उम्र भर देखते हो
है गोया मुक़द्दस न जाने मगर क्यूँ
फ़साना मेरा मुख़्तसर देखते हो
गर इंसान हो तो फ़क़त ख़ामियाँ ही
नहीं देखनी थीं मगर देखते हो
वो चेहरा नहीं चाँद है मेरे ग़ाफ़िल
उसे क्यूँ नहीं भर नज़र देखते हो
-‘ग़ाफ़िल’
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