Thursday, August 06, 2020

फ़साना मेरा मुख़्तसर देखते हो

तुम्हें भी लगेगा अगर देखते हो
हैं क्या क्या ये जो चश्मेतर देखते हो

दिखे भी तो क्यूँ उम्र भर की मुहब्बत
जो कुछ पल का हुस्न उम्र भर देखते हो

है गोया मुक़द्दस न जाने मगर क्यूँ
फ़साना मेरा मुख़्तसर देखते हो

गर इंसान हो तो फ़क़त ख़ामियाँ ही
नहीं देखनी थीं मगर देखते हो

वो चेहरा नहीं चाँद है मेरे ग़ाफ़िल
उसे क्यूँ नहीं भर नज़र देखते हो

-‘ग़ाफ़िल’

No comments:

Post a Comment