Friday, August 14, 2020

लफ़्ज़े इफ़्रात और है साहिब!

औरों की बात और है साहिब!
अपनी औक़ात और है साहिब!!

ठीक है कुछ नहीं पे कुछ, फिर भी
लफ़्ज़े इफ़्रात और है साहिब!

रात ये है के बस गुज़र जाए
वस्ल की रात और है साहिब!

जिसमें लुत्फ़ आए मिलने वालों को
वो मुलाक़ात और है साहिब!

एक ग़ाफ़िल से जो करा ले काम
वो करामात और है साहिब!!

-‘ग़ाफ़िल’

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