क्या हुई तेरी नज़र तिरछी के क्या क्या हो गया
कोई साँस अटकी कोई दिल पुर्ज़ा पुर्ज़ा हो गया
जी आवारा मेरा कुछ यूँ रह रहा अब मेरे साथ
ये भी सुह्बत में तेरी तेरे ही जैसा हो गया
मैं बहुत ही शाद हूँ और हाँ रक़ीबों का मेरे
जानता हूँ तेरे दिल में आना जाना हो गया
मुझको लगता है के इश्क़ अपना भी बेमानी ही है
देखता हूँ ये भी कितना तेरा मेरा हो गया
टूटते रिश्ते की ग़ाफ़िल फ़िक़्र भी गर हो तो क्यूँ
शह्र में जब मजनूँ वाला अपना रुत्बा हो गया
-‘ग़ाफ़िल’
कोई साँस अटकी कोई दिल पुर्ज़ा पुर्ज़ा हो गया
जी आवारा मेरा कुछ यूँ रह रहा अब मेरे साथ
ये भी सुह्बत में तेरी तेरे ही जैसा हो गया
मैं बहुत ही शाद हूँ और हाँ रक़ीबों का मेरे
जानता हूँ तेरे दिल में आना जाना हो गया
मुझको लगता है के इश्क़ अपना भी बेमानी ही है
देखता हूँ ये भी कितना तेरा मेरा हो गया
टूटते रिश्ते की ग़ाफ़िल फ़िक़्र भी गर हो तो क्यूँ
शह्र में जब मजनूँ वाला अपना रुत्बा हो गया
-‘ग़ाफ़िल’
बढ़िया नज़्म
ReplyDeleteजी आवारा मेरा कुछ यूँ रह रहा अब मेरे साथ
ReplyDeleteये भी सुह्बत में तेरी तेरे ही जैसा हो गया ।
- अत्यंत भावपूर्ण पंक्तियाँ । उम्दा रचना । सराहनीय प्रस्तुति । श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई ।
वाह!!!
ReplyDeleteलाजवाब सृजन।
शुक्रिया मोहतरमा
Delete