Saturday, May 27, 2017

लीजिए वह लुत्फ़ जो ले पाइए

और अब संदेश मत भिजवाइए
लानी हो तशरीफ़ जब भी, लाइए

हैं नहीं कम ज़िन्दगी में पेचो ख़म
आप भी थोड़ा बहुत उलझाइए

तारी हो उल्फ़त का अब कुछ यूँ सुरूर
ख़ुद बहकिए मुझको भी बहकाइए

कौन है जो कह दिया दौराने इश्क़
आप भी मेरी तरह शर्माइए

आपसे उम्मीद गो ऐसी न थी
ख़ैर फिर भी जा रहे तो जाइए

दूध के धोए नहीं हैं आप भी
देख मुझको मुँह न यूँ बिचकाइए

मेरे जिस्मो जान से ग़ाफ़िल जी आज
लीजिए वह लुत्फ़ जो ले पाइए

-‘ग़ाफ़िल’

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (28-05-2017) को
    "इनकी किस्मत कौन सँवारे" (चर्चा अंक-2635)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. वाह!!!
    सुन्दर गजल...

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