Tuesday, December 12, 2017

सुना है जैसे को तैसा मिलेगा

न सोच इस बज़्म में अब क्या मिलेगा
मिलेगा जो बहुत उम्दा मिलेगा

तू चल तो दो क़दम उल्फ़त की रह पर
जिसे देखा न वो सपना मिलेगा

फ़ज़ीहत के सिवा क़ूचे में तेरे
पता है और भी क्या क्या मिलेगा

ज़रा उस वक़्त की तारीफ़ तो कर
किसी भौंरे से जब गुञ्चा मिलेगा

बनेगी ही नहीं क़िस्मत से अपनी
हमें हर हाल में सहरा मिलेगा

रहे कितना भी उसका क़ाफ़िया तंग
मगर हर शख़्स इतराता मिलेगा

नहीं तू मिल सका पर है यक़ीं यह
कोई तो इक तेरे जैसा मिलेगा

रक़ीबों से हसद क्यूँ हो भला जब
हमें प्यार अपने हिस्से का मिलेगा

हुआ ग़ाफ़िल है मासूम इसलिए भी
सुना है जैसे को तैसा मिलेगा

-‘ग़ाफ़िल’

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