Thursday, August 20, 2020

क्यूँ न आज और ख़्वाब और भी हैं

ज्यूँ हो तुम बेहिज़ाब और भी हैं
मेरे सदके जनाब और भी हैं

तुम न इतराओ इस क़दर तुमको
इल्म हो माहताब और भी हैं

वो मुख़ातिब था तुमसे ठीक है पर
इश्क़ में कामयाब और भी हैं

क्या तुम्हीं ख़्वाबों से हो वाबस्ता
ऐसा है मह्वेख़्वाब और भी हैं

यूँ जो तुम आँखें फेर लेते हो
सोच लो पुरशबाब और भी हैं

शह्र में देखता हूँ मेरे सिवा
यार ख़ानाख़राब और भी हैं

रोज़ बा रोज़ क्यूँ मेरा ग़ाफ़िल
क्यूँ न आज और ख़्वाब और भी हैं

-‘ग़ाफ़िल’

4 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 18 नवंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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