दिल हमारे जिसे हैवान कहा करते हैं।
हम तो उसको भी मिह्रबान कहा करते हैं।।
अब के और आदिमों के बीच फ़र्क़ बेमानी,
जिस्म से हट रहे बनियान कहा करते हैं।
तमाम उम्र परवरिश में गुज़ारी जिनकी,
फूल वे ही हमें नादान कहा करते हैं।
बामुरौवत को यहाँ मात मिली है हरदम,
बेमुरौवत को हमी डॉन कहा करते हैं।
गुलों से बेस्तर ख़ारों की हिफ़ाज़त लाज़िम,
कैक्टस को चमन की शान कहा करते हैं।
कैसी फ़ित्रत के मस्त होकर सो रहा ग़ाफ़िल!
तेरे जैसों को ही बेजान कहा करते हैं।।
हम तो उसको भी मिह्रबान कहा करते हैं।।
अब के और आदिमों के बीच फ़र्क़ बेमानी,
जिस्म से हट रहे बनियान कहा करते हैं।
तमाम उम्र परवरिश में गुज़ारी जिनकी,
फूल वे ही हमें नादान कहा करते हैं।
बामुरौवत को यहाँ मात मिली है हरदम,
बेमुरौवत को हमी डॉन कहा करते हैं।
गुलों से बेस्तर ख़ारों की हिफ़ाज़त लाज़िम,
कैक्टस को चमन की शान कहा करते हैं।
कैसी फ़ित्रत के मस्त होकर सो रहा ग़ाफ़िल!
तेरे जैसों को ही बेजान कहा करते हैं।।
गुलों से बेस्तर ख़ारों की हिफ़ाज़त लाज़िम,
ReplyDeleteकैक्टस को चमन की शान कहा करते हैं।
-बहुत खूब!!!
तमाम उम्र परवरिश में जिसके ग़ुज़री है,
ReplyDeleteफूल वे ही हमें नादान कहा करते हैं।
bahut khub
यही तो दो पीढ़ी का अंतर है ...समझ कर भी ना समझ पाना ....
तमाम उम्र परवरिश में जिसके ग़ुज़री है,
ReplyDeleteफूल वे ही हमें नादान कहा करते हैं।
aajkal ki sabse dukhad awastha...sir lekin ab bap apne bete tak seemit hai isliye beta bhi apne bete ke liye hi.. ye bhool aap aur hamse hi hui hai.. phir kuch urdu ke shabd.. aap phir bhool gaye kya
बहुत बढ़िया ग़ज़ल!
ReplyDeleteसभी अशआर बहुत खूबसूरत हैं!
aadarniy sir
ReplyDeleteaap mere blog par aaye aur mujhe protsahit kiya iske liye aapki hriday se aabhari hun
. pahli baar aapke blog par shayad aai hun par yahan aakar v -aapki gazal ko padh kar bahut bahut hi achha laga .
ab thoda -thodaa urdu shabd jaan gai hun isliye samjhne me koi dikkat nahi hui
har panktiyan samyikta ka bodh karati hain.
गुलों से बेस्तर ख़ारों की हिफ़ाज़त लाज़िम,
कैक्टस को चमन की शान कहा करते हैं।
bahut hi behatreen
sadar naman
poonam
तमाम उम्र परवरिश में गुज़ारी जिनकी,
ReplyDeleteफूल वे ही हमें नादान कहा करते हैं।
ग़ज़ल का हर शेर लाजवाब है ! शुक्रिया !
आपकी ग़ज़लों का तो ज़वाब नहीं !
बहुत अच्छी ग़ज़ल...इसमें बागवाँ का दर्द झलकता है...धन्यवाद!
ReplyDeleteबेहद उम्दा गजल !
ReplyDeleteवाह! ग़ाफ़िल साहब वाह! हर शे'र लाज़वाब
ReplyDeleteएक उत्कृष्ट रचना, इसमे निहित भावों से समाज की वर्त्तमान प्रस्थिति के प्रति शिकायत तथा व्यंग्य दोनो का बोध एक साथ हो रहा है। धन्यवाद और बधाई स्वीकार करें ग़ाफ़िल साहब!
ReplyDeleteआप सभी शुभचिन्तकों का बहुत-बहुत शुक्रिया। हमें ख़ुशी है कि आप सब हमारी रचनाओं को बड़े ही मनोयोग से पढ़ते हैं और उस पर माकूल टिप्पणियाँ भी करते हैं। पुनः आभार
ReplyDelete-ग़ाफ़िल
बामुरौवत को यहाँ मात मिली है हरदम,
ReplyDeleteबेमुरौवत को हमी डॉन कहा करते हैं।
--aap bhi kisi DON se kam nahi zanaab.