मेरी तश्नगी मुझे ही दीवाना न बना दे।
तश्नालबी ही मौत का गाना न बना दे॥
ये उम्र तो तेरे ही तसव्वुर में कट गयी,
मरने का कोई और बहाना न बना दे।
मरने का कोई और बहाना न बना दे।
मेरे दिलो-दिमाग में तेरा ही फ़साना,
यह वक़्त कोई और फ़साना न बना दे।
यह वक़्त कोई और फ़साना न बना दे।
इक चाँद ही ता'शब तो मेरे साथ रहा है,
डर है उसे भी कोई बेगाना न बना दे।
डर है उसे भी कोई बेगाना न बना दे।
अब तक तो बेवफ़ा है जमाना मेरे लिए,
अब बेवफ़ा मुझे ये जमाना न बना दे।
अब बेवफ़ा मुझे ये जमाना न बना दे।
तीरे-नज़र की तेरे ख़लिश से तड़प रहे
ग़ाफ़िल को कोई और निशाना न बना दे॥
( तश्नगी- प्यास, तश्नालबी- ओंठों का प्यासा होना अर्थात् सूख जाना )
-ग़ाफ़िल
अब तक तो बेवफ़ा है जमाना मेरे लिए,
ReplyDeleteअब बेवफ़ा मुझे ये जमाना न बना दे।
बहुत खूब ...खूबसूरत गज़ल
इक चाँद ही ता'शब तो मेरे साथ रहा है,
ReplyDeleteडर है उसे भी कोई बेगाना न बना दे।
waah
...खूबसूरत गज़ल चन्द्र भूषण जी
ReplyDeleteअब तक तो बेवफ़ा है जमाना मेरे लिए,
ReplyDeleteअब बेवफ़ा मुझे ये जमाना न बना दे।
har sher bahut umdaa.......bahut khub
सुन्दर गज़ल!!
ReplyDeleteये उम्र तो तेरे ही तसव्वुर में कट गयी,
ReplyDeleteमरने का कोई और बहाना न बना दे।
bahut hi khubsurat gazal
pehli baar aapke blog me aai par aana safal hua bahut hi sundar rachna :)
अब तक तो बेवफ़ा है जमाना मेरे लिए,
ReplyDeleteअब बेवफ़ा मुझे ये जमाना न बना दे।
bahut sunder hamesha yad rahne wala sher hai
saader
rachana
ये उम्र तो तेरे ही तसव्वुर में कट गयी,
ReplyDeleteमरने का कोई और बहाना न बना दे।
खुबसूरत ग़ज़ल मुबारक हो!!!!
इक चाँद ही ता'शब तो मेरे साथ रहा है,
ReplyDeleteडर है उसे भी कोई बेगाना न बना दे।
khoobsoorat gazal....
अब तक तो बेवफ़ा है जमाना मेरे लिए,
अब बेवफ़ा मुझे ये जमाना न बना दे।
kisi gaane ki ek pankti hai..
agar bewafa tujhko pahchaan jaate, khuda ki kasam hum mohabbat na karte...
आप सभी कद्रदानों को नमस्कार! आप सभी ने मेरी ग़ज़ल की सराहना की बहुत-बहुत शुक्रिया। यक़ीन है आगे भी इसी तरह हमारी ग़ज़लें आपकी कद्रदानी की हक़दार होंगी। पुनः धन्यवाद
ReplyDeleteचन्द्र जी की गजल बहुत उम्दा ... पहली बार आना हुवा और सफल हुवा आना ..
ReplyDeletebahut achchi ghzzal
ReplyDelete"अब बेवफा मुझे ज़माना ना बना दे "बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबधाई
मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आभार
आशा
काफी गहरे भाव छुपे है इन पंक्तियों में |
ReplyDeletehttp://navkislaya.blogspot.com/
प्रभावी गज़ल ......
ReplyDeleteबहुत खूबसूरज ग़ज़ल पेश की है आपने!
ReplyDeleteअब तक तो बेवफ़ा है जमाना मेरे लिए,
ReplyDeleteअब बेवफ़ा मुझे ये जमाना न बना दे।
वाह गाफिल साहब, आपकी रचना ने तो दिल खुश कर दिया है ... मज़ा आ गया पढकर ...
इक चाँद ही ता'शब तो मेरे साथ रहा है,
ReplyDeleteडर है उसे भी कोई बेगाना न बना दे।
ek hasin sukhad ahsas.. man ko andar hi andar darata bhi hai.... wakai lajbab
एक् चाँद ही....बेगाना न बना दे । क्या बात है । उम्दा और खू़बसूरत ।
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