Monday, June 27, 2011

वन्दहु सदा तुमहि प्रतिरक्षक

जै जै प्रतिरच्छक जै हे सोक निवारक!
जै हो तुम्हार हे सब नीचन के तारक।

तुम हो त्रिदेव कै रूप बुद्धि-बल खानी,
संग सूरसती लछमी औ रहति भवानी।

सब कहनहार चाहे जौ मुँह मा आवै,
ऊ बतिया चाहे केतनौ का भरमावै।

सब ठीकै है जौनै कुछ तुमहि सुहायी,
पानी पताल से की सरगे से आयी।

तुम आला हाक़िम हौ तुम्हार सब चाकर,
तुम सब केहू कै ईस सरबगुन आगर।

सब कुछ तुम्हकां छाजै जउनै कै डारौ,
मनई का पैदा करौ या मनई मारौ।

ई ग़ाफ़िल मूरख नाय जो अलग नसावै,
सबके साथे मिलि गुन तुम्हार ही गावै।
                                                       -ग़ाफ़िल

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15 comments:

  1. जै जै जै हे निरसोक व सोक निवारक!
    जै हो तुम्हार हे सब नीचन के तारक।

    बढ़िया व्यंग किया है ...

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  2. तुम आला हाक़िम हौ तुम्हार सब चाकर,
    तुम सब केहू कै ईस सरबगुन आगर।

    बहुत ही मज़ेदार व्यंग्य.....बघेली का पुट है इसमें....
    पढ़ कर मन आनंदित हो गया !

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  3. सुबह सुबह वन्दना पढ़कर धन्य हो गया!

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  4. बहुत ही मज़ेदार व्यंग्य..आभार

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  5. सुन्दर||बहुत ही मज़ेदार व्यंग्य |

    अच्छी *अभिवयक्ति भावों की |

    आइये कभी देख जाइये ||

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  6. जरा इनपर भी निगाह डाले और
    कुछ संशोधन सुझाएँ ---

    सोखे सागर चोंच से, छोट टिटहरी नाय |
    इक-अन्ने से बन रहे, रुपया हमें दिखाय ||

    सौदागर भगते भये, डेरा घुसते ऊँट |
    जो लेना वो ले चले, जी-भर के तू लूट ||

    कछुआ - टाटा कर रहे , पूरे सारोकार |
    खरगोशों की फौज में, भरे पड़े मक्कार ||

    कोशिश अपने राम की, बचा रहे यह देश |
    सदियों से लुटता रहा, माया गई विदेश ||

    कोयल कागा के घरे, करती कहाँ बवाल |
    चाल-बाज चल न सका, कोयल चल दी चाल ||

    प्रगति पंख को नोचता, भ्रष्टाचारी बाज |
    लेना-देना क्यूँ करे , सारा सभ्य समाज ||

    रिश्तों की पूंजी बड़ी , हर-पल संयम *वर्त | *व्यवहार कर
    पूर्ण-वृत्त पेटक रहे , असली सुख *संवर्त || *इकठ्ठा

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  7. सब ठीकै है जौनै कुछ तुमहि सुहायी,
    पानी पताल से की सरगे से आयी।

    तुम आला हाक़िम हौ तुम्हार सब चाकर,
    तुम सब केहू कै ईस सरबगुन आगर।

    सब कुछ तुम्हकां छाजै जउनै कै डारौ,
    मनई का पैदा करौ या मनई मारौ।

    आज के प्रतिरक्षक विशेषकर भारतीय यही ही कर रहे हैं, भारतीय प्रतिरक्षा व्यवस्था और प्रतिरक्षकों पर करारा व्यंग्य...बधाई

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  8. 'सब कुछ तुम्हकां छाजै जउनै कै डारौ,
    मनई का पैदा करौ या मनई मारौ'

    प्रतिरक्षा विभाग और प्रतिरक्षकों पर बहुत ही बढ़िया व्यंग्य...ज़ेल में भी हत्याएं हो सकती हैं और थाने पर भी बलात्कार करके महिलाओं को सगर्भा बना दिया जाता है तो प्रतिरक्षक भला क्या-क्या नहीं कर सकते हैं...वाकई बहुत सटीक लिखा वह भी वन्दना के स्वर में...बधाई

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  9. बढ़िया व्यंग्य...विशेष रूप से भारतीय प्रतिरक्षकों पर

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  10. मेरी रचना तल्लीनता से पढ़ने और उसपर उचित टिप्पणी करने के लिए आप सभी सुधीजनों को बहुत-बहुत धन्यवाद

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  11. गजब करारा व्यंग - फुहारा, तन-मन भीजै
    जैसी बहे बयार पीठ पुनि तैसी कीजै.

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  12. शानदार प्रस्तुति…………
    नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.

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  13. बहुत ही बढ़िया व्यंग्य ...नववर्ष की शुभकामनाएं

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  14. VAH KYA SHABDON KA SANYOJAN HAI .... BADHAI GAFIL JI .

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