एक ग़ज़ल यह-
मतला-
आज फिर वो इश्क़ का इज़हार करके आ गये
ज़िन्दगी इस क़द्र भी दुश्वार करके आ गये
अश्आर-
यूँ नहीं वो थे मगर कुछ तो हुआ जो आज दिल
नज़्रे आतिश शौक से सरकार करके आ गये
वो गये थे इश्क़ के बीमार का करने इलाज़
और अपने-आपको बीमार करके आ गये
जो मेरी तक़्दीर थी मंज़ूर थी मुझको मगर
वो मेरी जानिब से क्यूँ इंकार करके आ गये
क्या पता के यूँ था छाया कौन सा उन पर सुरूर
जो रक़ीबों से नज़र दो चार करके आ गये
आईना चेहरे की रौनक़ देखकर हैरान था
वो किसी से टूटकर जब प्यार करके आ गये
इसी ज़मीन पर ग़ज़ल के मिजाज़ से ज़रा हटकर बाद में बना एक शे’र-
चाँद की रोटी बना जज़्बा जलाया सेंक ली
और समझे देश का उद्धार करके आ गये
मक़्ता-
शर्म ग़ाफ़िल जी ज़रा भी तो उन्हें आई नहीं
हुस्न को रुस्वा सरे बाज़ार करके आ गये
-‘ग़ाफ़िल’
मतला-
आज फिर वो इश्क़ का इज़हार करके आ गये
ज़िन्दगी इस क़द्र भी दुश्वार करके आ गये
अश्आर-
यूँ नहीं वो थे मगर कुछ तो हुआ जो आज दिल
नज़्रे आतिश शौक से सरकार करके आ गये
वो गये थे इश्क़ के बीमार का करने इलाज़
और अपने-आपको बीमार करके आ गये
जो मेरी तक़्दीर थी मंज़ूर थी मुझको मगर
वो मेरी जानिब से क्यूँ इंकार करके आ गये
क्या पता के यूँ था छाया कौन सा उन पर सुरूर
जो रक़ीबों से नज़र दो चार करके आ गये
आईना चेहरे की रौनक़ देखकर हैरान था
वो किसी से टूटकर जब प्यार करके आ गये
इसी ज़मीन पर ग़ज़ल के मिजाज़ से ज़रा हटकर बाद में बना एक शे’र-
चाँद की रोटी बना जज़्बा जलाया सेंक ली
और समझे देश का उद्धार करके आ गये
मक़्ता-
शर्म ग़ाफ़िल जी ज़रा भी तो उन्हें आई नहीं
हुस्न को रुस्वा सरे बाज़ार करके आ गये
-‘ग़ाफ़िल’
बहुत सुन्दर नायाब प्रस्तुति।
ReplyDeleteआभार कविता जी
Deleteआभार कविता जी
Deleteजो मेरी तक़्दीर थी मंज़ूर थी मुझको मगर
ReplyDeleteवो मेरी जानिब से क्यूँ इंकार करके आ गये
...........
आईना चेहरे की रौनक़ देखकर हैरान था
वो किसी से टूटकर जब प्यार करके आ गये
...... बेहतरीन .....
शुक्रिया निवेदिता जी
Deleteशुक्रिया निवेदिता जी
Deleteशुक्रिया शास्त्री जी आदाब
ReplyDeleteशुक्रिया शास्त्री जी आदाब
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