Tuesday, January 05, 2016

पढ़ करके इनको चाहे कोई हँसे या रोए

हैं आज के यही सब मेरे गढ़े नमूने
पढ़ करके इनको चाहे कोई हँसे या रोए

ये सर्दियों का मौसम फ़ुर्क़त की लम्बी रातें
कटतीं नहीं हैं गर तो मेरी ग़ज़ल ही गा ले!

बादल गरज रहे हैं बिजली चमक रही है
बारिश शुरू हो इससे पहले ही घर तो कर ले!

भीगी हुई ये बिल्ली कैसे रही है गुर्रा
है ख़ैरियत इसी में कोई इसे भगा दे

ये जिन्न इश्क़ वाला है शोख़ और नाज़ुक
जो चाहे जब भी इसको बोतल में बंद कर ले

आए जनाब तब जब बाज़ार उठ चुकी है
वो मोल कर हैं निकले हैं जब दीवाले

क्या सोचता है ग़ाफ़िल के ये है इक करिश्मा
ज़र्रे यहाँ सभी तो हैं ठोकरों पे पलते

-‘ग़ाफ़िल’

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