मौत भी आए तो ज़िन्दगी के लिए
पर किया आपने क्या किसी के लिए
आपसे हिज़्र बर्दाश्त होती नहीं
फिर क्या उम्मीद हो आशिक़ी के लिए
होगा इक दिन यक़ीनन विसाले सनम
कुछ जतन कीजिए उस घड़ी के लिए
आदमीयत को पावों तले रौंदता
हर कोई जा रहा बन्दगी के लिए
यार ग़ाफ़िल बड़े रिस्क का काम है
शा’इरी और भी हर किसी के लिए
-‘ग़ाफ़िल’
पर किया आपने क्या किसी के लिए
आपसे हिज़्र बर्दाश्त होती नहीं
फिर क्या उम्मीद हो आशिक़ी के लिए
होगा इक दिन यक़ीनन विसाले सनम
कुछ जतन कीजिए उस घड़ी के लिए
आदमीयत को पावों तले रौंदता
हर कोई जा रहा बन्दगी के लिए
यार ग़ाफ़िल बड़े रिस्क का काम है
शा’इरी और भी हर किसी के लिए
-‘ग़ाफ़िल’
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (30-01-2016) को "प्रेम-प्रीत का हो संसार" (चर्चा अंक-2237) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
उम्दा !
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