बन ठन के तू न यार तमाशा दिखाई दे
मैं चाहता हूँ जैसा है वैसा दिखाई दे
चाहेगा जिस तरह भी दिखाई पड़ूँगा मैं
पर तू कभी कभार ही अच्छा दिखाई दे
मिल पाएगा न ऐसे तो इंसाफ़ मेरे दिल
या जो सितम हुआ है ज़रा सा दिखाई दे
मझधार में ही नाव मेरी कब से है ख़ुदा
अब चाहिए मुझे भी किनारा दिखाई दे
लगता नहीं है फ़र्क़ ज़रा भी मुझे सनम
रब का नहीं तो तेरा ही चेहरा दिखाई दे
अच्छा लगेगा मुझको भी तुझको भी शर्तिया
मेरे वज़ूद का तू जो हिस्सा दिखाई दे
पत्थर उछालना के चला देना तेग़ ही
ग़ाफ़िल जो तेरे कू से गुज़रता दिखाई दे
-‘ग़ाफ़िल’
मैं चाहता हूँ जैसा है वैसा दिखाई दे
चाहेगा जिस तरह भी दिखाई पड़ूँगा मैं
पर तू कभी कभार ही अच्छा दिखाई दे
मिल पाएगा न ऐसे तो इंसाफ़ मेरे दिल
या जो सितम हुआ है ज़रा सा दिखाई दे
मझधार में ही नाव मेरी कब से है ख़ुदा
अब चाहिए मुझे भी किनारा दिखाई दे
लगता नहीं है फ़र्क़ ज़रा भी मुझे सनम
रब का नहीं तो तेरा ही चेहरा दिखाई दे
अच्छा लगेगा मुझको भी तुझको भी शर्तिया
मेरे वज़ूद का तू जो हिस्सा दिखाई दे
पत्थर उछालना के चला देना तेग़ ही
ग़ाफ़िल जो तेरे कू से गुज़रता दिखाई दे
-‘ग़ाफ़िल’
nice
ReplyDeleteNice lines...
ReplyDeleteMere blog par aapka swagat hai.