नहीं मालूम क्यूँकर बोलता है
ये जो मेढक सा टर टर बोलता है
न थी चूँ करने की जिस दिल की हिम्मत
वो अब ज़्यादा ही खुलकर बोलता है
जवानी की तो किर्चें भी हैं ग़ायब
नशा फिर भी चढ़ा सर बोलता है
क़फ़स में शर्तिया है देख लो जा
परिंदा मेरे सा गर बोलता है
नहीं हैं तोप फिर भी बीवियों से
हर इक इंसान डर कर बोलता है
मज़ाक़ इससे भला क्या होगा अच्छा
तू कैसा है सितमगर बोलता है
करम फूटा था जो ग़ाफ़िल हुआ था
सुख़नवर मुझसा अक़्सर बोलता है
-‘ग़ाफ़िल’
ये जो मेढक सा टर टर बोलता है
न थी चूँ करने की जिस दिल की हिम्मत
वो अब ज़्यादा ही खुलकर बोलता है
जवानी की तो किर्चें भी हैं ग़ायब
नशा फिर भी चढ़ा सर बोलता है
क़फ़स में शर्तिया है देख लो जा
परिंदा मेरे सा गर बोलता है
नहीं हैं तोप फिर भी बीवियों से
हर इक इंसान डर कर बोलता है
मज़ाक़ इससे भला क्या होगा अच्छा
तू कैसा है सितमगर बोलता है
करम फूटा था जो ग़ाफ़िल हुआ था
सुख़नवर मुझसा अक़्सर बोलता है
-‘ग़ाफ़िल’
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