Tuesday, November 07, 2017

तू न अब ऐसे लगे जैसे लगे लत कोई

जोर क्या दिल में मेरे आए भी गर मत कोई
जी करे गर तो करे मुझसे मुहब्बत कोई

नाम की उसके ही क्यूँ माला जपूँ रोज़ो शब
जो न महसूस करे मेरी ज़ुरूरत कोई

मैं भी देखूँ तो कोई रहता है मुझ बिन कैसे
कर दे हाँ आज अभी कर दे बग़ावत कोई

याद है लुत्फ़ का आलम वो के बरसात की रात
हम थे और हमपे टपकती थी टँगी छत कोई

रोज़ो शब जिसके तसव्वुर में गुज़ारी मैंने
हुस्न सी तेरे थी ऐ दोस्त वो आफ़त कोई

मैं भी रह लूँगा मेरी जाने ग़ज़ल तेरे बग़ैर
तू न अब ऐसे लगे जैसे लगे लत कोई

अब नहीं आती है ग़ाफ़िल जी मेरे जी में ये बात
के कभी मुझको लिखे मेरा सनम ख़त कोई

-‘ग़ाफ़िल’

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