सच कहूँ जाऊँगा हर हाल नहीं छोड़ ये दर
पर दिखे इक भी तो जिसको हो ज़ुरूरत मेरी
मैं न घर का ही रहा और न ही घाट का अब
देखिए लेके कहाँ जाती है उल्फ़त मेरी
-‘ग़ाफ़िल’
पर दिखे इक भी तो जिसको हो ज़ुरूरत मेरी
मैं न घर का ही रहा और न ही घाट का अब
देखिए लेके कहाँ जाती है उल्फ़त मेरी
-‘ग़ाफ़िल’
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