Saturday, December 09, 2017

मगर कल आज सा सस्ता नहीं था

नहीं शबनम था या शोला नहीं था
पता सबको है तू क्या क्या नहीं था

तुझे हम जानते हैं जाने कब से
तू रुस्वा था तो पर इतना नहीं था

भले खोटा हो लेकिन चल न पाए
यूँ कल तो एक भी सिक्का नहीं था

थीं गो बेबाकियाँ रिश्तों में फिर भी
कोई नासूर दिखलाता नहीं था

बिका तो कल भी था ग़ाफ़िल कुछ ऐसे
मगर कल आज सा सस्ता नहीं था

-‘ग़ाफ़िल’

5 comments:

  1. आपकी लिखी रचना  "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 13दिसंबर2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बिका तो कल भी था ग़ाफ़िल कुछ ऐसे
    मगर कल आज सा सस्ता नहीं था
    बहुत सुंदर

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