क्या कुछ इंसान भला करता है
जो भी करता है ख़ुदा करता है
हो मुहब्बत के हो नफ़्रत की कशिश
जी को मौला ही अता करता है
उसने भी घूरके मुझको देखा
उससे जब पूछा के क्या करता है
तू न आए पै तेरे डर से अजल
आदमी रोज़ मरा करता है
मुझसे तक़्दीर मेरी रोज़-ब-रोज़
कोई तो है जो जुदा करता है
क्यूँ नहीं करता है मेरा कुछ अगर
तू ही नुक़्सानो नफ़ा करता है
है कठिन यूँ भी नहीं ग़ाफ़िल पर
कौन अब वादा वफ़ा करता है
-‘ग़ाफ़िल’
जो भी करता है ख़ुदा करता है
हो मुहब्बत के हो नफ़्रत की कशिश
जी को मौला ही अता करता है
उसने भी घूरके मुझको देखा
उससे जब पूछा के क्या करता है
तू न आए पै तेरे डर से अजल
आदमी रोज़ मरा करता है
मुझसे तक़्दीर मेरी रोज़-ब-रोज़
कोई तो है जो जुदा करता है
क्यूँ नहीं करता है मेरा कुछ अगर
तू ही नुक़्सानो नफ़ा करता है
है कठिन यूँ भी नहीं ग़ाफ़िल पर
कौन अब वादा वफ़ा करता है
-‘ग़ाफ़िल’
वाह बहुत खूब।
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