हमारे जिस्म को जो रात चादर सा बिछाते हैं
वही दिन के उजाले में पड़ी सलवट गिनाते हैं
ग़मों को दूर करने का तरीक़ा एक है यह भी
के उनको देखिए अक़्सर जो अक़्सर मुस्कुराते हैं
करें बर्बाद वक़्त अपना चलाकर बात क्यूँ उनकी
जो रातो दिन फरेबों में ही वक़्त अपना गँवाते हैं
कभी कम हो नहीं सकते हमारे हौसले हर्गिज
ग़ज़ल तो गाते ही गाते हैं हम नौहा भी गाते हैं
तू अपनी देख हम उश्शाक़ हैं ग़ाफ़िल! हमारा क्या!!
अजल से भी निभा लेते हैं गर हम ख़ुद पे आते हैं
-‘ग़ाफ़िल’
वही दिन के उजाले में पड़ी सलवट गिनाते हैं
ग़मों को दूर करने का तरीक़ा एक है यह भी
के उनको देखिए अक़्सर जो अक़्सर मुस्कुराते हैं
करें बर्बाद वक़्त अपना चलाकर बात क्यूँ उनकी
जो रातो दिन फरेबों में ही वक़्त अपना गँवाते हैं
कभी कम हो नहीं सकते हमारे हौसले हर्गिज
ग़ज़ल तो गाते ही गाते हैं हम नौहा भी गाते हैं
तू अपनी देख हम उश्शाक़ हैं ग़ाफ़िल! हमारा क्या!!
अजल से भी निभा लेते हैं गर हम ख़ुद पे आते हैं
-‘ग़ाफ़िल’
वाह जनाब
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया जनाब
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