होए कैसे भी मगर पैदा कर
तीरगी से तू सहर पैदा कर
क्या कही, बात कही सीधे से जो
बात में कुछ तो लहर पैदा कर
लुत्फ़ आएगा जवाँ होगा वो जब
जी में उल्फ़त का शरर पैदा कर
जिससे, बेबस सी तमन्ना-ए-इश्क़
कर ले परवाज़ वो पर पैदा कर
तो फ़ना होगा असर ज़ह्रों का
ज़ह्र तू भी कुछ अगर पैदा कर
क्या है जुम्बिश ही फ़क़त पावों की
बाबते जी भी सफ़र पैदा कर
ज़िन्दगी जोड़-घटाना ही नहीं
ग़ाफ़िल इक भाव-नगर पैदा कर
-‘ग़ाफ़िल’
तीरगी से तू सहर पैदा कर
क्या कही, बात कही सीधे से जो
बात में कुछ तो लहर पैदा कर
लुत्फ़ आएगा जवाँ होगा वो जब
जी में उल्फ़त का शरर पैदा कर
जिससे, बेबस सी तमन्ना-ए-इश्क़
कर ले परवाज़ वो पर पैदा कर
तो फ़ना होगा असर ज़ह्रों का
ज़ह्र तू भी कुछ अगर पैदा कर
क्या है जुम्बिश ही फ़क़त पावों की
बाबते जी भी सफ़र पैदा कर
ज़िन्दगी जोड़-घटाना ही नहीं
ग़ाफ़िल इक भाव-नगर पैदा कर
-‘ग़ाफ़िल’
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 08/04/2019 की बुलेटिन, " ८ अप्रैल - बहरों को सुनाने के लिये किए गए धमाके का दिन - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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