शबो रोज़ इल्म का व्यापार होगा
तो कब उल्फ़त का कारोबार होगा
एक क़त्अ-
मुझे लगता है शायद मेरा जीना
अब आगे और भी दुश्वार होगा
चलाकर वो नज़र का तीर मुझपर
कहे जाते हैं यूँ ही प्यार होगा
चला था तीर आगे नीमकश पर
हुज़ूर इस बार कैसा वार होगा
हर इक चलता रहे गर लीक पर ही
तमाशा ख़ाक मेरे यार होगा
अगर ग़ाफ़िल मुसन्निफ़ हो गए सब
ज़माना शर्तिया लाचार होगा
-‘ग़ाफ़िल’
तो कब उल्फ़त का कारोबार होगा
एक क़त्अ-
मुझे लगता है शायद मेरा जीना
अब आगे और भी दुश्वार होगा
चलाकर वो नज़र का तीर मुझपर
कहे जाते हैं यूँ ही प्यार होगा
चला था तीर आगे नीमकश पर
हुज़ूर इस बार कैसा वार होगा
हर इक चलता रहे गर लीक पर ही
तमाशा ख़ाक मेरे यार होगा
अगर ग़ाफ़िल मुसन्निफ़ हो गए सब
ज़माना शर्तिया लाचार होगा
-‘ग़ाफ़िल’
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