इश्क़ इस भी क़दर दोस्तो रुस्वा नहीं होता
आँखों पे ज़माने के जो पर्दा नहीं होता
दुनिया से हम उश्शाक़ जो पा जाते हक़ अपने
होता तो बहुत कुछ हाँ तमाशा नहीं होता
आया था तो कर लेता हमेशा के लिए घर
इक बार भी या दिल में तू आया नहीं होता
हो जाती हैं वर्ना तो हर इक तर्ह की बातें
बस तुझसे कभी प्यार का चर्चा नहीं होता
मिल जाता जो धोखे से ही ग़ाफ़िल से कभी तू
दावा है के फिर देखता क्या क्या नहीं होता
-‘ग़ाफ़िल’
आँखों पे ज़माने के जो पर्दा नहीं होता
दुनिया से हम उश्शाक़ जो पा जाते हक़ अपने
होता तो बहुत कुछ हाँ तमाशा नहीं होता
आया था तो कर लेता हमेशा के लिए घर
इक बार भी या दिल में तू आया नहीं होता
हो जाती हैं वर्ना तो हर इक तर्ह की बातें
बस तुझसे कभी प्यार का चर्चा नहीं होता
मिल जाता जो धोखे से ही ग़ाफ़िल से कभी तू
दावा है के फिर देखता क्या क्या नहीं होता
-‘ग़ाफ़िल’
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