हिज्र ही क्यूँ नहीं हमसफ़र हो
आपसे इश्क़ अल्लाह पर हो
और कुछ भी न हो तो चलेगा
आपका मुस्कुराना मगर हो
एक क़त्अ-
इक झलक देखना देखना क्या
देखना गर नहीं आँख भर हो
जी करे है मेरे जी के मालिक
आपके सिम्त अब रहगुज़र हो
खुल्द हो या के दोज़ख हो मंज़िल
आपका नाम ही राहबर हो
मेरे जैसे हज़ारों हैं ग़ाफ़िल
आपकी हर किसी पर नज़र हो
-‘ग़ाफ़िल’
आपसे इश्क़ अल्लाह पर हो
और कुछ भी न हो तो चलेगा
आपका मुस्कुराना मगर हो
एक क़त्अ-
इक झलक देखना देखना क्या
देखना गर नहीं आँख भर हो
जी करे है मेरे जी के मालिक
आपके सिम्त अब रहगुज़र हो
खुल्द हो या के दोज़ख हो मंज़िल
आपका नाम ही राहबर हो
मेरे जैसे हज़ारों हैं ग़ाफ़िल
आपकी हर किसी पर नज़र हो
-‘ग़ाफ़िल’
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