मेरे ही लिए क्यूँ के रस्ता न जाने
मैं हूँ वह के जो आबलो पा न जाने
तेरे सिम्त होता है अल्लाह क्या क्या
यहाँ पे तो होता है क्या क्या न जाने
नज़र की तेरी हो इनायत है ख़्वाहिश
तू मुझ पर से लेकिन हटाना न जाने
हिजाब इसलिए मेरे मुँह पर नहीं है
के तू ज़िश्तरू चाँद जैसा न जाने
नहीं गीत गाता हूँ मैं ताके ग़ाफ़िल
कोई शख़्स अफ़साना मेरा न जाने
-‘ग़ाफ़िल’
मैं हूँ वह के जो आबलो पा न जाने
तेरे सिम्त होता है अल्लाह क्या क्या
यहाँ पे तो होता है क्या क्या न जाने
नज़र की तेरी हो इनायत है ख़्वाहिश
तू मुझ पर से लेकिन हटाना न जाने
हिजाब इसलिए मेरे मुँह पर नहीं है
के तू ज़िश्तरू चाँद जैसा न जाने
नहीं गीत गाता हूँ मैं ताके ग़ाफ़िल
कोई शख़्स अफ़साना मेरा न जाने
-‘ग़ाफ़िल’
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना 31 जुलाई 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत लाजवाब...
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