Monday, July 29, 2019

कोई शख़्स अफ़साना मेरा न जाने

मेरे ही लिए क्यूँ के रस्ता न जाने
मैं हूँ वह के जो आबलो पा न जाने

तेरे सिम्त होता है अल्लाह क्या क्या
यहाँ पे तो होता है क्या क्या न जाने

नज़र की तेरी हो इनायत है ख़्वाहिश
तू मुझ पर से लेकिन हटाना न जाने

हिजाब इसलिए मेरे मुँह पर नहीं है
के तू ज़िश्तरू चाँद जैसा न जाने

नहीं गीत गाता हूँ मैं ताके ग़ाफ़िल
कोई शख़्स अफ़साना मेरा न जाने

-‘ग़ाफ़िल’

3 comments:


  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना 31 जुलाई 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  3. बहुत लाजवाब...

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