ख़्वाहिश ऐसी थी नहीं पर हो गए
शम्अ क्या देखी हम अख़्गर हो गए
है तसल्ली सब न तो कुछ ही सही
देवता राहों के पत्थर हो गए
चाहत अपनी थी के समझे जाएँ पर
शे’र ग़ालिब के हम अक़्सर हो गए
काम आईं हैं मुसल्सल कोशिशें
यूँ नहीं दर्या समन्दर हो गए
गो फ़क़त ग़ाफ़िल थे हम शाइर जनाब
आपकी सुह्बत में रहकर हो गए
(अख़्गर=पतिंगा)
-‘ग़ाफ़िल’
शम्अ क्या देखी हम अख़्गर हो गए
है तसल्ली सब न तो कुछ ही सही
देवता राहों के पत्थर हो गए
चाहत अपनी थी के समझे जाएँ पर
शे’र ग़ालिब के हम अक़्सर हो गए
काम आईं हैं मुसल्सल कोशिशें
यूँ नहीं दर्या समन्दर हो गए
गो फ़क़त ग़ाफ़िल थे हम शाइर जनाब
आपकी सुह्बत में रहकर हो गए
(अख़्गर=पतिंगा)
-‘ग़ाफ़िल’
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (02-07-2019) को "संस्कृत में शपथ लेने वालों की संख्या बढ़ी है " (चर्चा अंक- 3384) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद शास्त्री जी
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