जी की उड़ान जैसे नक़्ल तैर की करे
है मेरा तर्फ़दारी मगर गैर की करे
जाना से यकज़बाँ मैं कभी हो नहीं सका
मैं सर की कहूँ और वो है पैर की करे
सीनःफ़िगार मुझसा और कौन हो भला
के वस्ल की शब बात भी वो ग़ैर की करे
वो जाँसिताँ है और मैं जाँबर नहीं हूँ यार!
देखें के कौन आके मेरी ख़ैर की करे
हुस्नो-हरम पे जाँनिसार हो रहा है क्यूँ
ग़ाफ़िल तू जाके सैर किसी दैर की करे
(तैर= परिन्दा, यकजबाँ= सहमत, जाना= प्रेमिका, बारहा= अक्सर, सीनःफ़िगार= टूटे हुए दिलवाला, वस्ल की शब= मिलन की रात, ग़ैर= दूसरा, जाँसिताँ= जान लेने वाली, जाँबर= जान बचाने का सामर्थ्य रखने वाला, हुस्न= सौन्दर्य, हरम= अन्तःपुर, जाँनिसार= जान न्योछावर कर देने वाला, दैर= बुतख़ाना, मूर्ति-घर)
-‘ग़ाफ़िल’
है मेरा तर्फ़दारी मगर गैर की करे
जाना से यकज़बाँ मैं कभी हो नहीं सका
मैं सर की कहूँ और वो है पैर की करे
सीनःफ़िगार मुझसा और कौन हो भला
के वस्ल की शब बात भी वो ग़ैर की करे
वो जाँसिताँ है और मैं जाँबर नहीं हूँ यार!
देखें के कौन आके मेरी ख़ैर की करे
हुस्नो-हरम पे जाँनिसार हो रहा है क्यूँ
ग़ाफ़िल तू जाके सैर किसी दैर की करे
(तैर= परिन्दा, यकजबाँ= सहमत, जाना= प्रेमिका, बारहा= अक्सर, सीनःफ़िगार= टूटे हुए दिलवाला, वस्ल की शब= मिलन की रात, ग़ैर= दूसरा, जाँसिताँ= जान लेने वाली, जाँबर= जान बचाने का सामर्थ्य रखने वाला, हुस्न= सौन्दर्य, हरम= अन्तःपुर, जाँनिसार= जान न्योछावर कर देने वाला, दैर= बुतख़ाना, मूर्ति-घर)
-‘ग़ाफ़िल’
 
 
 
जी की उड़ान जैसे नक़ल तैर की करे।
ReplyDeleteअपना तो है मग़र सुलूक ग़ैर की करे।।
-वाह!!! बेहतरीन रचना...दाद कबूलें.
जी की उड़ान जैसे नक़ल तैर की करे।
ReplyDeleteअपना तो है मग़र सुलूक ग़ैर की करे।।
सीनःफ़िगार मुझसा और कौन हो भला?
के वस्ल की शब बात भी वह ग़ैर की करे।
छोटी बहर की ख़ूबसूरत और मुकम्मल ग़ज़ल....... निःशब्द कर दिया है मुझे....आभार ....
कभी मेरे ब्लाग ghazalyatra.blogspot.com पर भी आयें....
मैं हो न सका यकज़बाँ जानाँ से बारहा,
ReplyDeleteमैं सर की कहूँ और के वह पैर की करे।
....मुझे तो इस गज़ल का यह शेर बड़ा प्यारा लगा।
mujhe kai baar padhni padegi... bahut hi ackshi kriti hai..
ReplyDeleteवह जाँसिताँ है और मैं जाँबर नहीं हूँ यार!
ReplyDeleteदेखें के कौन आ के मेरी ख़ैर की करे।
udru seekhne ki khwaish rakhne walo ke liye utkrist kriti
'के वस्ल की शब बात भी वह ग़ैर की करे' च...च...च...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...
अपना है तरफ़दारी मग़र ग़ैर की करे
ReplyDeleteक्या बात है...
gagar me sagar hai guru
ReplyDeleteवाह एक एक शेर उम्दा ... बेमिशाल ... आइएए दोस्ती पक्की करें शीर्षक में हमने भी अपना नाम जोड़ लिया... :)
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत... सभी शेर शानदार
ReplyDeleteसादर बधाई।
बहुत उम्दा गज़ल है ! यह अच्छा है कि आप मुश्किल शब्दों के मायने नीचे दे देते हैं ! हम जैसे कम उर्दू जानने वालों के लिए आसानी हो जाती है ! आभार आपका !
ReplyDeleteसीनःफ़िगार मुझसा और कौन हो भला?
ReplyDeleteके वस्ल की शब बात भी वह ग़ैर की करे।
खुदा खैर करे ................
बहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या बात
हुस्नो-हरम पे जाँनिसार हो रहा है क्यूँ?
ReplyDeleteग़फ़िल तू जाके सैर किसी दैर की करे।।
....बहुत खूब! हरेक शेर बहुत उम्दा..बेहतरीन गज़ल..
behtareen, kya khoob जी की उड़ान जैसे नक़्ल तैर की करे।
ReplyDeleteअपनी है तरफ़दारी मग़र ग़ैर की करे।।
मैं हो न सका यकज़बाँ जानाँ से बारहा,
मैं सर की कहूँ और के वह पैर की करे।