फ़ज़ाएं मस्त मदमाती, अदाएं शोख दीवानी।
ये हूरों की सी महफ़िल है नज़ारा है परिस्तानी।।
घनी काली घटाओं में खिला ज्यूँ फूल बिजली का,
घनेरे स्याह बालों में चमकते रुख हैं नूरानी।
कशिश कैसी के बेख़ुद सा चला जाए वहीं पर दिल,
जहाँ ललकारती सागर की हर इक मौज़ तूफ़ानी।
भला ये ज्वार कैसा है नशा-ए-प्यार कैसा है,
हुआ जो ज़ुल्फ़ ज़िन्दाँ में क़तीले-चश्म जिन्दानी।
ऐ ग़ाफ़िल ख़ुद के जन्नत से जहाँ को ख़ुद किया दोज़ख,
हुआ तू जिसका दीवाना वो तेरी कब थी दीवानी।।
(जिन्दाँ=क़ैदख़ाना, क़तीले-चश्म=नज़र से क़त्ल किया गया हो जो, ज़िन्दानी=क़ैदी)
-‘ग़ाफ़िल’
ये हूरों की सी महफ़िल है नज़ारा है परिस्तानी।।
घनी काली घटाओं में खिला ज्यूँ फूल बिजली का,
घनेरे स्याह बालों में चमकते रुख हैं नूरानी।
कशिश कैसी के बेख़ुद सा चला जाए वहीं पर दिल,
जहाँ ललकारती सागर की हर इक मौज़ तूफ़ानी।
भला ये ज्वार कैसा है नशा-ए-प्यार कैसा है,
हुआ जो ज़ुल्फ़ ज़िन्दाँ में क़तीले-चश्म जिन्दानी।
ऐ ग़ाफ़िल ख़ुद के जन्नत से जहाँ को ख़ुद किया दोज़ख,
हुआ तू जिसका दीवाना वो तेरी कब थी दीवानी।।
(जिन्दाँ=क़ैदख़ाना, क़तीले-चश्म=नज़र से क़त्ल किया गया हो जो, ज़िन्दानी=क़ैदी)
-‘ग़ाफ़िल’
बहुत उम्दा दर्जे के शेर |
ReplyDeleteबधाई ||
ravikar
आपका ब्लॉग एक खजाने जैसा है।
ReplyDeleteइस प्रवाहमय ग़ज़ल को पढ़कर दिल प्रसन्न हो गया।
ReplyDeleteभला ये ज्वार कैसा है नशा-ए-प्यार कैसा है,
ReplyDeleteहुआ जो ज़ुल्फ़ ज़िन्दाँ में क़तीले-चश्म जिन्दानी।
बहुत खूब ... सुन्दर गज़ल
शारूत्री जी! मेरी इस अमानत को आपकी पारखी नज़र ने क़ाबिले-ग़ुफ़्तगू समझा बहुत-बहुत शुक़्रिया, मैं सोचता था कि इस ख़ुशनसीबी की हक़दार मेरी अमानत अब होगी भी या नहीं... सो आज मैं बहुत ही ख़ुश हूँ। पुन: आभार
ReplyDeleteएक बार संगीता जी की दया हुई थी मेरी अमानत पर उनका भी बहुत-बहुत आभार
-ग़ाफ़िल
जहां ललकारती सागर की हर एक मौज तूफानी .बहुत खूब नया नदाज़ .
ReplyDeleteघनी काली घटाओं में खिला ज्यूँ फूल बिजली का,
ReplyDeleteघनेरे स्याह बालों में चमकते रुख हैं नूरानी।
sunder ghazal
बेहतरीन शेरर हैं ग़ज़ल के !
ReplyDeleteभला ये ज्वार कैसा है नशा-ए-प्यार कैसा है,
ReplyDeleteहुआ जो ज़ुल्फ़ ज़िन्दाँ में क़तीले-चश्म जिन्दानी।
katile chasm hi har aashik ki khawish hoti hai..phir zulf zinda mein ho katal to kya baat hai sir kalpna ki ja sakti hai..is ghazal ki khasiyat iske lajabad sher aur .. aur iska prabah hai..hardik badhaiyi
अति सुन्दर
ReplyDeleteघनी काली घटाओं में खिला ज्यूँ फूल बिजली का
ReplyDeletewaah ...
phool bijli ka ... !
misraa,
apni misaal aap ban gayaa hai waah !!
ek shaandaar gzl ke liye
mubarakbaad qubool farmaaeiN .
very nice mishra ji
ReplyDeleteबढ़िया लिखा है.
ReplyDeleteआप सभी कद्रदानों को बहुत-बहुत शुक्रिया
ReplyDeleteक्या कहना, बहुत सुंदर
ReplyDeletebahut sunder gajal.aek lafj chun ke likhe hain.bahut bahut badhaai aapko.
ReplyDeleteभला ये ज्वार कैसा है नशा-ए-प्यार कैसा है,
ReplyDeleteहुआ जो ज़ुल्फ़ ज़िन्दाँ में क़तीले-चश्म जिन्दानी।
--"kya baat hai guru"
बहुत खूब बेहतरीन ग़ज़ल ...
ReplyDeletechandrbhooshan ji -bahut khoob likha hai aapne .aapke blog ka parichay ''http://yeblogachchhalaga.blogspot.com'' par prastut kiya gaya hai .aap is URL par aakar anugraheet karen .aabhar
ReplyDeleteऐ ग़ाफ़िल ख़ुद के जन्नत से जहाँ को ख़ुद किया दोज़ख,
ReplyDeleteहुआ तू जिसका दीवाना वो तेरी कब थी दीवानी।।
bahut sundar abhivyakti.badhai.
'घनी काली घटाओं में खिला ज्यों फूल बिजली का
ReplyDeleteघनेरे स्याह बालों में चमकते रुख हैं नूरानी '
..............वाह गज़ब का शेर
.........खुबसूरत रूमानी ग़ज़ल
सत्यम जी आपको बहुत-बहुत धन्यवाद जो आपने मरी यह रचना आज भी चर्चामंच पर लगाई
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत,बेहतरीन ग़ज़ल
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