Tuesday, July 09, 2019

आपका मुस्कुराना मगर हो

हिज्र ही क्यूँ नहीं हमसफ़र हो
आपसे इश्क़ अल्लाह पर हो

और कुछ भी न हो तो चलेगा
आपका मुस्कुराना मगर हो

एक क़त्अ-

इक झलक देखना देखना क्या
देखना गर नहीं आँख भर हो
जी करे है मेरे जी के मालिक
आपके सिम्त अब रहगुज़र हो

खुल्द हो या के दोज़ख हो मंज़िल
आपका नाम ही राहबर हो

मेरे जैसे हज़ारों हैं ग़ाफ़िल
आपकी हर किसी पर नज़र हो

-‘ग़ाफ़िल’

No comments:

Post a Comment