Saturday, June 11, 2011

मेरी तश्नगी

मेरी तश्नगी मुझे ही दीवाना न बना दे।
तश्नालबी ही मौत का गाना न बना दे॥

ये उम्र तो तेरे ही तसव्वुर में कट गयी,
मरने का कोई और बहाना न बना दे।

मेरे दिलो-दिमाग में तेरा ही फ़साना,
यह वक़्त कोई और फ़साना न बना दे।

इक चाँद ही ता'शब तो मेरे साथ रहा है,
डर है उसे भी कोई बेगाना न बना दे।

अब तक तो बेवफ़ा है जमाना मेरे लिए,
अब बेवफ़ा मुझे ये जमाना न बना दे।

तीरे-नज़र की तेरे ख़लिश से तड़प रहे
ग़ाफ़िल को कोई और निशाना न बना दे॥

( तश्नगी- प्यास, तश्नालबी- ओंठों का प्यासा होना अर्थात् सूख जाना )
                                                                    -ग़ाफ़िल

19 comments:

  1. अब तक तो बेवफ़ा है जमाना मेरे लिए,
    अब बेवफ़ा मुझे ये जमाना न बना दे।

    बहुत खूब ...खूबसूरत गज़ल

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  2. इक चाँद ही ता'शब तो मेरे साथ रहा है,
    डर है उसे भी कोई बेगाना न बना दे।
    waah

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  3. ...खूबसूरत गज़ल चन्द्र भूषण जी

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  4. अब तक तो बेवफ़ा है जमाना मेरे लिए,
    अब बेवफ़ा मुझे ये जमाना न बना दे।


    har sher bahut umdaa.......bahut khub

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  5. सुन्दर गज़ल!!

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  6. ये उम्र तो तेरे ही तसव्वुर में कट गयी,
    मरने का कोई और बहाना न बना दे।
    bahut hi khubsurat gazal
    pehli baar aapke blog me aai par aana safal hua bahut hi sundar rachna :)

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  7. अब तक तो बेवफ़ा है जमाना मेरे लिए,
    अब बेवफ़ा मुझे ये जमाना न बना दे।
    bahut sunder hamesha yad rahne wala sher hai
    saader
    rachana

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  8. ये उम्र तो तेरे ही तसव्वुर में कट गयी,
    मरने का कोई और बहाना न बना दे।
    खुबसूरत ग़ज़ल मुबारक हो!!!!

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  9. इक चाँद ही ता'शब तो मेरे साथ रहा है,
    डर है उसे भी कोई बेगाना न बना दे।

    khoobsoorat gazal....

    अब तक तो बेवफ़ा है जमाना मेरे लिए,
    अब बेवफ़ा मुझे ये जमाना न बना दे।

    kisi gaane ki ek pankti hai..

    agar bewafa tujhko pahchaan jaate, khuda ki kasam hum mohabbat na karte...

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  10. आप सभी कद्रदानों को नमस्कार! आप सभी ने मेरी ग़ज़ल की सराहना की बहुत-बहुत शुक्रिया। यक़ीन है आगे भी इसी तरह हमारी ग़ज़लें आपकी कद्रदानी की हक़दार होंगी। पुनः धन्यवाद

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  11. चन्द्र जी की गजल बहुत उम्दा ... पहली बार आना हुवा और सफल हुवा आना ..

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  12. "अब बेवफा मुझे ज़माना ना बना दे "बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
    बधाई
    मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आभार
    आशा

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  13. काफी गहरे भाव छुपे है इन पंक्तियों में |

    http://navkislaya.blogspot.com/

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  14. बहुत खूबसूरज ग़ज़ल पेश की है आपने!

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  15. अब तक तो बेवफ़ा है जमाना मेरे लिए,
    अब बेवफ़ा मुझे ये जमाना न बना दे।

    वाह गाफिल साहब, आपकी रचना ने तो दिल खुश कर दिया है ... मज़ा आ गया पढकर ...

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  16. इक चाँद ही ता'शब तो मेरे साथ रहा है,
    डर है उसे भी कोई बेगाना न बना दे।
    ek hasin sukhad ahsas.. man ko andar hi andar darata bhi hai.... wakai lajbab

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  17. एक् चाँद ही....बेगाना न बना दे । क्या बात है । उम्दा और खू़बसूरत ।

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