Wednesday, November 04, 2015

पर जली है जो चिता वह थी मेरे अरमान की

लोग समझे थे के है वो फ़ालतू सामान की
पर जली है जो चिता वह थी मेरे अरमान की

असलियत में इश्क़ फ़रमाना बहुत आसाँ नहीं
है यहाँ बाज़ी लगी रहती जिगर-ओ-जान की

देखकर नाज़ो अदा तेरी बड़ी उलझन में हूँ
लाज़ रख पाऊँगा कैसे धर्म-ओ-ईमान की

ख़्वाब में महबूब का दीदार करवा कर ख़ुदा
मंज़िले उल्फ़त की मेरी राह क्या आसान की

मैंने सोचा था के तू यादों में ही, पर आएगा
जब नहीं आना है जा यह भी ख़ुशी क़ुर्बान की

अब मुझे ही खोज पाना है कठिन मेरे लिए
धज्जियाँ इस क़द्र बिखरी हैं मेरी पहचान की

ठीक है ग़ाफ़िल पे फ़िक़रे जी करे जितना, कसो
पर ये क्या टोपी उछाले हो दिले नादान की

-‘ग़ाफ़िल’

आदाब!लोग समझे थे के है वो फ़ालतू सामान कीपर जली है जो चिता वह थी मेरे अरमान कीअसलियत में इश्क़ फ़रमाना बहुत आसाँ नहीं...
Posted by Chandra Bhushan Mishra Ghafil on 3 नवंबर 2015

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (06-11-2015) को "अब भगवान भी दौरे पर" (चर्चा अंक 2152) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सुन्दर प्रस्तुति।

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