हम भी जब तुक से तुक कभी भिड़ाते हैं
बे मानी वाली ही ग़ज़ल बनाते हैं
हमको अच्छी लगती है उनकी बोली
जो हहहहहहहकलाते हैं
पेट सभी का त्यों ही दुखने लगता है
जैसे ही हम अपना कान खुजाते हैं
एक शेर सर्कस से भाग गया जंगल
ठहरो इक बिल्ले को शेर बनाते हैं
हँसने को मुहताज हुए पैसे वाले
कृपा हँसी की उन पर हम बरसाते हैं
सारे होशियार मिलकर हुशियारी की
मुफ़्तै में हमको माला पहनाते हैं
दास कबीरा की आटा चक्की का क्या
गेंहू सँग घुन अब भी ख़ूब पिसाते हैं
आज नहीं मिलने वाली है वाह हमें
शेर वेर हम अपना लेकर जाते हैं
कई चीटियाँ मिल हाथी को चट कर दीं
ग़ाफ़िल जी अब सबको यही बताते हैं
-‘ग़ाफ़िल’
बे मानी वाली ही ग़ज़ल बनाते हैं
हमको अच्छी लगती है उनकी बोली
जो हहहहहहहकलाते हैं
पेट सभी का त्यों ही दुखने लगता है
जैसे ही हम अपना कान खुजाते हैं
एक शेर सर्कस से भाग गया जंगल
ठहरो इक बिल्ले को शेर बनाते हैं
हँसने को मुहताज हुए पैसे वाले
कृपा हँसी की उन पर हम बरसाते हैं
सारे होशियार मिलकर हुशियारी की
मुफ़्तै में हमको माला पहनाते हैं
दास कबीरा की आटा चक्की का क्या
गेंहू सँग घुन अब भी ख़ूब पिसाते हैं
आज नहीं मिलने वाली है वाह हमें
शेर वेर हम अपना लेकर जाते हैं
कई चीटियाँ मिल हाथी को चट कर दीं
ग़ाफ़िल जी अब सबको यही बताते हैं
-‘ग़ाफ़िल’
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