आतिशे इश्क़ ज़ारी रहे दरमियाँ
इस सबब है जला फिर मिरा आशियाँ
आज फिर इश्क़बाज़ों की चाँदी हुई
आज फिर गुल हुईं शह्र की बत्तियाँ
लज़्ज़ते इश्क़ का शौक गर है तुझे
माफ़ करती रहे मेरी ग़ुस्ताख़ियाँ
अब रहा एक बस ख़्वाब का आसरा
वस्ल में गर रहीं यूँ परेशानियाँ
बल्लियों मैं उछलना गया भूल, जब
देख उसको उछलने लगीं बल्लियाँ
क्यूँ किसी को सुनाई नहीं पड़ रहीं
आ रहीं जो उजालों से सिसकारियाँ
जब चला उसके दर छींक कोई दिया
एक ग़ाफ़िल की हैं यूँ भी दुश्वारियाँ
-‘ग़ाफ़िल’
इस सबब है जला फिर मिरा आशियाँ
आज फिर इश्क़बाज़ों की चाँदी हुई
आज फिर गुल हुईं शह्र की बत्तियाँ
लज़्ज़ते इश्क़ का शौक गर है तुझे
माफ़ करती रहे मेरी ग़ुस्ताख़ियाँ
अब रहा एक बस ख़्वाब का आसरा
वस्ल में गर रहीं यूँ परेशानियाँ
बल्लियों मैं उछलना गया भूल, जब
देख उसको उछलने लगीं बल्लियाँ
क्यूँ किसी को सुनाई नहीं पड़ रहीं
आ रहीं जो उजालों से सिसकारियाँ
जब चला उसके दर छींक कोई दिया
एक ग़ाफ़िल की हैं यूँ भी दुश्वारियाँ
-‘ग़ाफ़िल’
siyaahe-shabb sisak ke kah rahii ..,
ReplyDeleteki chrage-gul pe chalii hin ariyaan.....
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