समझ में न आए ज़रा भी ये ग़ाफ़िल ख़ुदा जाने क्या क्या रवायत बनाई हज़ारों हुए जा रहे जलने वाले मिली जो मुझे सीधी सादी लुगाई
-‘ग़ाफ़िल’
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