न जाने वो क्यूँ बारहा पूछते हैं
हम उनके सिवा और क्या चाहते हैं
उन्हें देखकर हैं न आँखें अघातीं
हमें प्यार से जब भी वो देखते हैं
हुज़ूर इस तरह देखना कनखियों से
हमें है पता आप क्या चाहते हैं
लज़ाकर हुए आप जो पानी पानी
हम अब आप में डूबते तैरते हैं
हुआ जाए अम्नो सुकूँ सब नदारद
फिर उल्फ़त का हम भूत क्यूँ पालते हैं
किनारे ही ग़ाफ़िल लगा डूबने तो
कहा लोग साहिल पे ही डूबते हैं
हम उनके सिवा और क्या चाहते हैं
उन्हें देखकर हैं न आँखें अघातीं
हमें प्यार से जब भी वो देखते हैं
हुज़ूर इस तरह देखना कनखियों से
हमें है पता आप क्या चाहते हैं
लज़ाकर हुए आप जो पानी पानी
हम अब आप में डूबते तैरते हैं
हुआ जाए अम्नो सुकूँ सब नदारद
फिर उल्फ़त का हम भूत क्यूँ पालते हैं
किनारे ही ग़ाफ़िल लगा डूबने तो
कहा लोग साहिल पे ही डूबते हैं
-‘ग़ाफ़िल’
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