इश्क़ में जीने वालों का जीना ही मत दुश्वार करो
हे ईश्वर! हम उश्शाक़ों का भी तो बेड़ा पार करो
लुत्फ़ भला क्या जब मेरे शिक़्वे कर रहे रक़ीबों से
जितना भी करना है मुझसे ही मेरे सरकार करो
ऐसा भी है नहीं के मुझको ही तुमसे है इश्क़ हुआ
तुमको भी है प्यार, न उसका भले यार इज़हार करो
तलब लगे तो मुझे पिलाओ आँखों से आबे अह्मर
नहीं तुम्हारा कुछ जाएगा इतना तो दिलदार करो
रोज़ रोज़ दौराने इश्क़ां लुकाछुपी मंज़ूर नहीं
करना है जो करो आज ही, आर करो या पार करो
क़त्ल शौक से हो जाएगा ये ग़ाफ़िल बस इक पल में
आँखों को थोड़ी जुंबिश दे अपनी नज़र कटार करो
(उश्शाकों=आशिक़ लोगों, आबे अह्मर=लाल रंग की एक ख़ास शराब)
-‘ग़ाफ़िल’
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 12 मई 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
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