जनाब की अंजुमन में कुछ पल गुलाब बरसे
पता नहीं क्यूँ बुरी तरह फिर जनाब बरसे
हो तेरी नफ़्रत के मेरे मौला हो तेरी रहमत
जो कुछ भी बरसे मेरे यहाँ बेहिसाब बरसे
कभी तो ऐसा भी हो के मुझ पर तेरी नज़र हो
मगर न आँखों से तेरी उस दम अज़ाब बरसे
हसीं दिलों की पनाह मुझको हुई मयस्सर
फ़लक़ से यारो अब आग बरसे के आब बरसे
न पा सकेगी मक़ाम ग़ाफ़िल तेरी ये हसरत
के कुछ किए बिन ही तेरे बाबत सवाब बरसे
-‘ग़ाफ़िल’
पता नहीं क्यूँ बुरी तरह फिर जनाब बरसे
हो तेरी नफ़्रत के मेरे मौला हो तेरी रहमत
जो कुछ भी बरसे मेरे यहाँ बेहिसाब बरसे
कभी तो ऐसा भी हो के मुझ पर तेरी नज़र हो
मगर न आँखों से तेरी उस दम अज़ाब बरसे
हसीं दिलों की पनाह मुझको हुई मयस्सर
फ़लक़ से यारो अब आग बरसे के आब बरसे
न पा सकेगी मक़ाम ग़ाफ़िल तेरी ये हसरत
के कुछ किए बिन ही तेरे बाबत सवाब बरसे
-‘ग़ाफ़िल’
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