हुनर यह कभी आज़माकर तो देखो
दिलों में ठिकाना बनाकर तो देखो
नहीं फिर सताएगी तन्हाई-ए-शब
किसी के भी ख़्वाबों में जाकर तो देखो
उठा लेगा तुमको ज़माना सर आँखों
तुम इक भी गिरे को उठाकर तो देखो
न बह जाए उसमें ये दुनिया तो कहना
तबीयत से आँसू बहाकर तो देखो
रहेंगे न तुमसे फिर अफ़्राद ग़ाफ़िल
कभी नाज से मुस्कुराकर तो देखो
-‘ग़ाफ़िल’
दिलों में ठिकाना बनाकर तो देखो
नहीं फिर सताएगी तन्हाई-ए-शब
किसी के भी ख़्वाबों में जाकर तो देखो
उठा लेगा तुमको ज़माना सर आँखों
तुम इक भी गिरे को उठाकर तो देखो
न बह जाए उसमें ये दुनिया तो कहना
तबीयत से आँसू बहाकर तो देखो
रहेंगे न तुमसे फिर अफ़्राद ग़ाफ़िल
कभी नाज से मुस्कुराकर तो देखो
-‘ग़ाफ़िल’
खूबसूरत गजल।
ReplyDeleteनाज से मुस्कुराकर तो देखो
वाह
बहुत खूब
आभार जनाब
Deleteलाजवाब प्रस्तुति !! खूबसूरत ग़ज़ल ! बहुत खूब आदरणीय ।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया जनाब
Deleteलाजवाब गजल...
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीया
Deleteशुक्रिया पम्मी जी
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