Tuesday, May 29, 2018

कभी नाज से मुस्कुराकर तो देखो

हुनर यह कभी आज़माकर तो देखो
दिलों में ठिकाना बनाकर तो देखो

नहीं फिर सताएगी तन्हाई-ए-शब
किसी के भी ख़्वाबों में जाकर तो देखो

उठा लेगा तुमको ज़माना सर आँखों
तुम इक भी गिरे को उठाकर तो देखो

न बह जाए उसमें ये दुनिया तो कहना
तबीयत से आँसू बहाकर तो देखो

रहेंगे न तुमसे फिर अफ़्राद ग़ाफ़िल
कभी नाज से मुस्कुराकर तो देखो

-‘ग़ाफ़िल’

7 comments:

  1. खूबसूरत गजल।

    नाज से मुस्कुराकर तो देखो
    वाह
    बहुत खूब

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  2. लाजवाब प्रस्तुति !! खूबसूरत ग़ज़ल ! बहुत खूब आदरणीय ।

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  3. लाजवाब गजल...

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