रक़ीबों पर करम तेरा मुझे शिक़्वा नहीं है पर
समझ ले तू के यह तारीफ़ है ऐसा नहीं है पर
कई दिलदार हैं यह बात सच तो है ओ जाने जाँ
तेरे जैसा ज़माने में कोई दूजा नहीं है पर
-‘ग़ाफ़िल’
समझ ले तू के यह तारीफ़ है ऐसा नहीं है पर
कई दिलदार हैं यह बात सच तो है ओ जाने जाँ
तेरे जैसा ज़माने में कोई दूजा नहीं है पर
-‘ग़ाफ़िल’
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (03-05-2017) को "मजदूरों के सन्त" (चर्चा अंक-2959) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह वाह
ReplyDeleteक्या बात है.
स्वागत हैं आपका खैर