बाबते ज़िक़्र ही सच है के वो घर आता है
किसके कोठे पे भला रोज़ क़मर आता है
करता रहता है वो एहसान सभी पर बेशक
उसको एहसान जताना भी मगर आता है
वक़्त के पार चले जाते हैं वे लोग अक़्सर
जिनको थोड़ा सा भी जीने का हुनर आता है
बेवफ़ाई का गिला मुझको भला क्यूँ हो जब
वह तसव्वुर में मेरे शामो सहर आता है
झूठे ही हैं वो जो भी क़त्ल का इल्ज़ाम अपने
कहते रहते हैं के बस उनके ही सर आता है
दर्दे उल्फ़त से है आँखों में ये सैलाब ओफ्फो!!
मैं भी देखूँगा उसे मुझ तक अगर आता है
पेड़ भी चलते हैं ग़ाफ़िल जी! मेरे ख़्वाबों में
गाँव का बूढ़ा वो पीपल का शजर आता है
-‘ग़ाफ़िल’
किसके कोठे पे भला रोज़ क़मर आता है
करता रहता है वो एहसान सभी पर बेशक
उसको एहसान जताना भी मगर आता है
वक़्त के पार चले जाते हैं वे लोग अक़्सर
जिनको थोड़ा सा भी जीने का हुनर आता है
बेवफ़ाई का गिला मुझको भला क्यूँ हो जब
वह तसव्वुर में मेरे शामो सहर आता है
झूठे ही हैं वो जो भी क़त्ल का इल्ज़ाम अपने
कहते रहते हैं के बस उनके ही सर आता है
दर्दे उल्फ़त से है आँखों में ये सैलाब ओफ्फो!!
मैं भी देखूँगा उसे मुझ तक अगर आता है
पेड़ भी चलते हैं ग़ाफ़िल जी! मेरे ख़्वाबों में
गाँव का बूढ़ा वो पीपल का शजर आता है
-‘ग़ाफ़िल’
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