Friday, February 07, 2020

हाँ मगर पल्लू सरक जाए ज़ुरूरी तो नहीं

कोई जब गाए ग़ज़ल गाए ज़ुरूरी तो नहीं
मैं कहूँ वह जो तुझे भाए ज़ुरूरी तो नहीं

फूल महकाता है पूरा गुलसिताँ बस इस सबब
वो मेरा दामन भी महकाए ज़ुरूरी तो नहीं

यह ज़ुरूरी है के रो लें रोने का जब जी हो पर
आँख से आँसू निकल जाए ज़ुरूरी तो नहीं

अच्छे दिन का हम सभी को इंतिज़ार इतना है पर
कोई दिन वह सामने आए ज़ुरूरी तो नहीं

ठीक है ग़ाफ़िल हूँ मैं रफ़्तारे हवा भी ठीक है
हाँ मगर पल्लू सरक जाए ज़ुरूरी तो नहीं

-‘ग़ाफ़िल’

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