फैली है कम भी होगी कभी शान ही तो
निकलेगा रह भी जाएगा अरमान ही तो है
रहने दो वह जहाँ है के उसको निकाल दो
कुछ भी करो तुम उसका मेरी जान ही तो है
बोलो तो छोड़ ही दूँ मैं उल्फ़त का सिलसिला
मेरे ख़ुशी से जीने का सामान ही तो है
जी में ही गर उठा है तो इतना बुरा भी क्या
उट्ठा है बैठ जाएगा तूफ़ान ही तो है
ग़ाफ़िल अगर पढ़ा तो वफ़ा की बस इक किताब
इसको कहाँ है अक़्ल परेशान ही तो है
-‘ग़ाफ़िल’
निकलेगा रह भी जाएगा अरमान ही तो है
रहने दो वह जहाँ है के उसको निकाल दो
कुछ भी करो तुम उसका मेरी जान ही तो है
बोलो तो छोड़ ही दूँ मैं उल्फ़त का सिलसिला
मेरे ख़ुशी से जीने का सामान ही तो है
जी में ही गर उठा है तो इतना बुरा भी क्या
उट्ठा है बैठ जाएगा तूफ़ान ही तो है
ग़ाफ़िल अगर पढ़ा तो वफ़ा की बस इक किताब
इसको कहाँ है अक़्ल परेशान ही तो है
-‘ग़ाफ़िल’
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 12 फरवरी 2020 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाह!!!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर ....लाजवाब।
वाह उम्दा सृजन।
ReplyDeleteबहुत दिन बाड़ कोई ग़ज़ल इतनी पसंद आई है!
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