Tuesday, February 11, 2020

कुछ भी करो तुम उसका मेरी जान ही तो है

फैली है कम भी होगी कभी शान ही तो
निकलेगा रह भी जाएगा अरमान ही तो है

रहने दो वह जहाँ है के उसको निकाल दो
कुछ भी करो तुम उसका मेरी जान ही तो है

बोलो तो छोड़ ही दूँ मैं उल्फ़त का सिलसिला
मेरे ख़ुशी से जीने का सामान ही तो है

जी में ही गर उठा है तो इतना बुरा भी क्या
उट्ठा है बैठ जाएगा तूफ़ान ही तो है

ग़ाफ़िल अगर पढ़ा तो वफ़ा की बस इक किताब
इसको कहाँ है अक़्ल परेशान ही तो है

-‘ग़ाफ़िल’

4 comments:


  1. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 12 फरवरी 2020 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर ....लाजवाब।

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  3. बहुत दिन बाड़ कोई ग़ज़ल इतनी पसंद आई है!

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