Tuesday, February 04, 2020

पर लोग समझते हैं के गाने के लिए है

आदाब! ये लीजिए मतला, शे’र और मक़्ता गरज़ यह के ग़ज़ल मुक़म्मल हुई-

है सच के ये दुनिया तो दीवाने के लिए है
कुछ लोगों का आना फ़क़त आने के लिए है

तू देख ज़माना ही है इस ज़ीस्त की बाबत
मत सोच के यह ज़ीस्त ज़माने के लिए है

मेरी ये ग़ज़ल जीने का गो तौर है ग़ाफ़िल
पर लोग समझते हैं के गाने के लिए है

-‘ग़ाफ़िल’
(पृष्‍ठभूमि चित्र गूगल से साभार)

4 comments:




  1. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 5 फरवरी 2020 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (05-02-2020) को    "आया ऋतुराज बसंत"   (चर्चा अंक - 3602)    पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
     --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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  3. बहुत ही लाजवाब सृजन
    वाह!!!

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