हिज्र के साथ कभी वस्ल अगर अपनी होगी
जानता हूँ ये मुलाक़ात भी अच्छी होगी
वो है एहसान फ़रामोश मैं एहसान शनास
उसकी दुनिया में मेरी पैठ ही कितनी होगी
जी रहा शौक से जी हाँ ये मगर याद रहे
ज़ीस्त के साथ चली मौत भी आती होगी
अच्छा ख़ासा था अभी हो जो गया मैं शाइर
सोचता हूँ के इधर ज़िन्दगी कैसी होगी
एक ग़ाफ़िल पे ये एहसाने क़रम हो के न हो
लोग कहते हैं कभी जानेमन अपनी होगी
-‘ग़ाफ़िल’
जानता हूँ ये मुलाक़ात भी अच्छी होगी
वो है एहसान फ़रामोश मैं एहसान शनास
उसकी दुनिया में मेरी पैठ ही कितनी होगी
जी रहा शौक से जी हाँ ये मगर याद रहे
ज़ीस्त के साथ चली मौत भी आती होगी
अच्छा ख़ासा था अभी हो जो गया मैं शाइर
सोचता हूँ के इधर ज़िन्दगी कैसी होगी
एक ग़ाफ़िल पे ये एहसाने क़रम हो के न हो
लोग कहते हैं कभी जानेमन अपनी होगी
-‘ग़ाफ़िल’
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