Monday, May 23, 2016

यूँ ही

न आता है कोई यादों में यूँ ही
न घुलता है नशा साँसों में यूँ ही

जवाँ कज़रारी शब नाज़ो अदा से
खिंची जाए मेरी आँखों में यूँ ही

तज़र्बा है बहुत हुस्नो हसब का
न उलझाओ मुझे ख़्वाबों में यूँ ही

तेरे दीदार से महरूम हूँ मैं
गुज़रता वक़्त है सदियों में यूँ ही

अरे वो शब! गयी थी हिज़्र में जो!
ले आया क्यूँ उसे बातों में यूँ ही

यक़ीनन मुस्कुराया होगा ग़ाफ़िल
नहीं चर्चा चली गलियों में यूँ ही

-‘ग़ाफ़िल’

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